वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, पार से उपहार शिविर
१४ सितंबर, २०१९
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥9.25॥
भावार्थ : देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता ॥25॥
हम अपनी चाह कैसे बन जाते हैं?
हमारी चाह हमारा जीवन कैसे निर्धारण कर देती है?
कृष्ण क्यों कह रहे हैं कि हम जिसे पूजेंगे, हम वैसे ही बन जाएँगे?
संगीत: मिलिंद दाते